Monday, 19 August 2013

रुपया 63.25 के रेकॉर्ड निचले स्तर पर, शेयर मार्केट धड़ाम


रुपया 63.25 के रेकॉर्ड निचले स्तर पर, शेयर मार्केट धड़ाम

सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के अपने सबसे निचले स्तर 63.25 पर हुंच गया। रुपए की गिरावट का असर स्टॉक मार्केट पर भी दिखा और सेंसेक्स और निफ्टी में भी भारी गिरावट का दौर जारी रहा। रुपये के लगातार कमजोरी के नए रिकॉर्ड बनाने से कोहराम मच गया

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तैयार रहे , दिसम्बर तक रुपय में भारी गिरावट जारी रहेगी , 1 U.S.D = Rs. 75 /- तक जा सकता है !

मनमोहन और सोनिया के देश छोड़कर भागने की खबर कॉर्पोरेट जगत में है , भारतीय कंपनी से पैसा पैसा खींचा जा रहा है , सबका खामियाजा अंत में जनता को ही भुगतना पड़ेगा ?''मोदी जी'' अगर पूरे देश को आज सम्हाल ले तो शायद यह सारे इन्वेस्टर्स वापस आ जायेंगे , नही तो चीन में अपना पैसा लगाएंगे ?

यह ''कॉर्पोरेट'' केवेल तब पैसा लगाते है जब देश उनके पैसे का सही मुनाफा वापस देता है ? इन कॉर्पोरेट का कोई धर्म या जाती नही होती है ,यहा ''अरब के शेख'' और ''अमेरिका के यहूदी'' सब साथ साथ बैठे होते है ?

* चीन जैसे देशो में इन कॉर्पोरेट पर सरकार का नियंत्रण रहता है , पैसे से विकास होता है !
*सोमालिया जैसे देशो में इन कॉर्पोरेट का पैसा ''ग्रहयुध'' में लगता है , वहा ''युध'' ही मुनाफा है !
*भारत देश में बेचारे यह कॉर्पोरेट उल्टे खुद ही ठग लिये जाते है , और इनका मुनाफा ''स्विस'' चला जाता है ?

Note :यह ''कॉर्पोरेट जगत'' ( (कभी इन्वेस्टर्स कभी माफिया) ) हमेशा एक जैसे नीतियो पर नही चलते है , हर देश में इनकी नीतिया बदलती है ! कही इन्वेस्टर्स बन जाता है कही माफिया ? इनको बस मुनाफा चाहिये , हर हाल में , और यह हर देश में है और जनता की चुनी सरकारो से ज्यादा ताकतवर होते हैं ?

परमात्मा ही है परम सत्य


परमात्मा ही है परम सत्य

धार्मिक आजादी का सभी धर्मों में दुरुपयोग हुआ है। इसका यह मतलब नहीं की लोगों की आजादी छीन ली जाए। धार्मिक आजादी के चलते जहां संतों ने धर्म की मनमानी व्याख्याएं की और उसका अपने हित में उपयोग किया, वहीं बहुत से संतों ने अपना एक अलग ही पंथ गढ़ लिया है।

धार्मिक आजादी के चलते जहां ज्योतिषियों ने ज्योतिष विद्या को धर्म और देवी-देवताओं से जोड़कर उसका सत्यानाश कर दिया, वहीं उन्होंने लोगों को ठगने के लिए कई तरह की मनमानी पूजा, आरती, हवन, उपाय, नग, नगीने और अनुष्ठान विकसित कर लिए।
वैदिक काल से चली आ रही इस धार्मिक आजादी के चलते हिंदू धर्म पहले वेदों के मार्ग से भटककर पुराणिक धर्म बना और आज इसे क्या नाम दें यह आप ही तय करें।
दुविधा में हिंदू समाज : आज का हिंदू ज्योतिष, बाबा, पंडित, धर्मगुरु और संतों की मनमानी के चलते अक्सर दुविधा में रहता है। जिसे बचपन से मानते थे, ज्योतिषियों ने उसकी पूजा छुड़ाकर शनि-राहू, पितृ दोष, कालसर्प दोष के चक्कर में उलझा दिया। आखिर हिंदू क्या करें- निराकार परमेश्वर को माने, देवी-देवताओं को माने या ज्योतिष और बाबाओं के चक्कर काटता रहे।
टीवी पर ज्योतिषियों द्वारा फैलाया जा रहा भय और भ्रम। मनमाने यंत्र, मंत्र, तंत्र और ताबीज। ढेर सारे बाबाओं के विरोधाभासी प्रवचन और नए-नए जन्में धार्मिक संगठन, जिन्होंने हिंदू धर्म की मनमानी व्याख्याएं की। यह सब हिंदू धर्म को बिगाड़ने के अपराधी नहीं है तो क्या है? इन सबके कारण आज ज्यादातर हिंदू स्वयं को दुख, द्वंद्व और दुविधा के चक्र में फंसा हुआ महसूस करता है।
इसके नुकसान : दुविधा के कारण आपका का आत्मविश्वास खो जाएगा। आप हर समय डरे-डरे से रहेंगे और दिमाग में द्वंद्व पैदा हो जाएगा। दिमागी द्वंद्व से विरोधाभास और भ्रम उत्पन्न होगा। भ्रम और द्वंद्व से नकारात्मक विचार उत्पन्न होंगे। नकारात्मक विचारों की अधिकता के कारण जीवन में कुछ भी अच्‍छा घटित होना बंद हो जाएगा।
यदि आप ज्योतिष सहित सभी को दावे के साथ मानते हैं तो आप बहुत ज्यादा तर्क-वितर्क करने वाले तथाकथित ज्ञानी बनकर समाज में और भय व भ्रम फैलाएंगे। इससे आपके भीतर बुराइयों का जन्म होगा। आप धर्म के संबंध में मनघडंत बातें करेंगे। आप स्वयं के भीतर झांककर देखें और स्वयं से पूछें कि क्या यह सच है, जो मैं जानता या कहता हूं? आप यह क्यों नहीं मानते हैं कि ईश्वर की तारीफ से बढ़कर आपके पास कुछ भी कहने के लिए नहीं है।
दुविधा और दिमागी द्वंद्व में फंसे हुए लोगों के बारे में ही संत कबीर ने कहा है- दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम। तब जानें कि पूजा से बढ़कर है प्रार्थना। ग्रहों से बढ़कर है परमात्मा। परमात्मा ही है सबका मालिक।
वेदों के अनुसार ब्रह्म (ईश्‍वर) ही सत्य है। परमेश्वर से इस ब्रह्मांड की रचना हुई। इस ब्रह्मांड में सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियां रहती हैं। वैदिक ऋषि उस परमेश्वर सहित सकारात्मक शक्तियों की प्रार्थना गाते थे और उनसे ही सब कुछ मांगते थे। उनकी प्रार्थना की शुरुआत ही इस धन्यवाद से होती थी कि आपने हमें अब तक जो दिया है उसके लिए धन्यवाद। मांग से महत्वपूर्ण है- धन्यवाद।

वैदिक काल में लोग सिर्फ एक परमेश्वर की ही प्रार्थना करते थे। इसके अलावा समय-समय पर वे प्राकृतिक शक्तियों में पंचत्व (धरती, अग्नि, जल, वायु, आकाश), उमा, उषा, पूषा,पर्जन्य, रुद्र, आदित्य आदि की स्तुति करते थे।

बाद में धीरे-धीरे लोग ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रार्थना करने लगे। राम के दौर तक लोग वेद से जुड़े थे। कृष्ण के दौर में पुराणों की रचना हुई और उसके बाद वेदों के परमेश्वर और प्राकृतिक शक्तियों को छोड़कर लोग राम, कृष्ण के साथ ही दुर्गा, दत्तात्रेय, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, बजरंग आदि की प्रार्थना करने लगे।
बुद्ध के काल में प्रार्थना और स्तुति ने पूर्णत: पूजा और आरती का रूप ले लिया और राम, कृष्ण, विष्णु, बुद्ध, शिव और दुर्गा के मंदिर प्रमुखता से बनने लगे। मुस्लिम शासन और अंग्रेज काल में हिंदू धर्म की बहुत हानी हुई और लोगों में ज्यादा भ्रम फैलने लगा। जनता मुस्लिम और ईसाई धर्म अपनाने लगी।
लोगों में अपने धर्म, संकृति, इतिहास और समाज को लेकर भ्रम, विरोधाभाष और गलत जानकारियां फैलाइ जाने लगी। लोग भय, चिंता और भ्रम में जीने लगे। इस दौर में कई संत हुए जिन्होंने लोगों को इस भ्रम और भय से निकालने का प्रयास किया। आजकल लोग शनि, बजरंगबली, साई, शिव और दुर्गा के साथ ही तरह-तरह के नए बाबाओं और देवी देवताओं को ज्यादा पूजने लगे हैं।
कुछ लोगों को निराकार परमेश्वर की भक्ति करने में अड़चन होती है, इसलिए वे देवी और देवताओं को ज्यादा मानते हैं और मूर्ति पूजा में विश्‍वास रखते हैं। उनके लिए यही है कि वे किसी एक को साधे। देवी और देवताओं के रूप में जो सकारात्मक शक्तियां हैं उसमें से किसी एक पर कायम रहने से शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। लेकिन जो व्यक्ति समय अनुसार, ज्योतिष की सलाह पर या गुरुओं के चक्कर में अपने देवता बदलते रहते हैं एक दिन सभी देवता उसका साथ छोड़ कर चले जाते हैं।
कुछ लोग भगवानों या देवी-देवताओं में भी बड़े और छोटे का फर्क कर छांटते हैं। अर्थात जो सबसे शक्तिशाली होगा हम उसे ही पूजेंगे। ऐसे मूढ़जन वह लोग हैं जिन्होंने वेद, ‍उपनिषद्, गीता या महाभारत नहीं पढ़ी। जो व्यक्ति ब्रह्म की ओर कदम बढ़ाकर ब्रह्म में लीन हो जाता है वह ब्रह्म स्वरूप हो जाता है। सभी देवी-देवता और भगवान ब्रह्म स्वरूप हैं।
सागर से निकलने वाली नदियां बहुत सारे नाम की होती है, लेकिन सभी सागर में मिलकर-खोकर सागर ही हो जाती है।
बचपन से जिसे मानते हैं, बस उसे ही मानते-पूजते रहें या जिसके प्रति दिल्लगी हो जाए- बस उसी को अपना जीवन समर्पित कर दें। एक साधे सब सधे और सब साधे तो कोई नहीं सधे। इसके लिए एक कहानी है-
भगवान कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मणी के साथ भोजन कर रहे थे, तभी अचानक उठकर वह दौड़े और द्वार तक पहुंचे भी नहीं थे कि रूक कर वापस लौट आए और पुन: भोजन करने लगे। यह देख रुक्मणी ने पूछा- प्रभु आप अचानक उठकर दौड़े और द्वार तक पहुंचकर पुन: तुरंत ही लौट आए आखिर इसका कारण क्या है।
श्रीकृष्ण ने कहा- प्रिये! एक मानव मुझे पुकार रहा था, तो मैं उसकी मदद के लिए दौड़ा, लेकिन उसने जरा भी सब्र नहीं रखा और वह किसी और को पुकारने लगा। उसे शायद मुझ पर विश्वास नहीं है, इसलिए तुम्हीं बताओ मैं क्या कर सकता हूं। उसमें थोड़ी तो श्रद्धा और सबूरी होनी चाहिए थी।
आखिर सत्य क्या है- ईश्वर ही सत्य है, सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है। सत्यम् शिवम सुंदरम। अब इसका अर्थ भी समझ लें...परमेश्वर ही सत्य है। शिव का अर्थ शुभ होता है और सुंदरम प्रकृति को कहते हैं।

जो व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास करता है वही सत्य बोलने की ताकत रखता है और जो सत्य बोलता है उसके जीवन में ‍शिव अर्थात शुभ होने लगता है। शुभ का अर्थ सब कुछ अच्छा होने लगता है और जब सब कुछ अच्‍छा होने लगता है तो जीवन एक सुंदर सफर बन जाता है।
-सत्यम् शिवम सुंदरम्

डर के आगे जीत है।


एक नामी गिरामी गुण्डा नाई की दूकान पे सेविंग और हेयर कटिंग कराने गया।

और उनसे बोला,
मुँहमाँगा ईनाम दूँगा सेविंग के।
लेकिन जरा सा भी कहीं कट छँट गया तो उसकी गर्दन काट दूँगा।

डर के मारे सारे नाईयो ने गुण्डे की हजामत बनाने से मना कर दिया।

अंत में गुंडा एक गाँव के नाई के पास गया।

नाई एक कम उम्र का लड़का था।

लड़के ने गुंडे की बात सुनकर कहा,
बैठो साहब मैं बनाता हूँ।

फिर लड़के ने काफी सफाई से गुंडे की हजामत बना दी।

गुंडे ने खुश होकर लड़के को दस हजार रूपया दिया।
और पूछा, क्या तुम्हे अपनी जान जाने का डर नहीं लगा था??

लड़के ने कहा-ः
डर?डर किस बात का?
पहल तो मेरे हाथ मेँ थी।

गुंडे ने चौंक कर कहा,
'पहल मेरे हाथ'मेँ थी का मतलब??

लड़के ने हँसकर कहा-ः
मतलब की उस्तरा तो मेरे हाथ मेँ था,
अगर आपको खरोंच भी लगती तो आपका गर्दन काट देता मैं।

बेचारा गुंडा!ये सुनकर पसीने से लथपथ हो गया।

नोट-ःडर के आगे जीत है।

सनातन धर्म ही सबसे प्राचीन धर्म

दोस्तो एक रोचक तथ्य है कि इंडोनेशिया एक सम्पूर्ण मुस्लिम देश है लेकिन वहाँ पर मुस्लिम राम शिव गणेश श्री कृष्ण को ही पूजते है और सबसे ज्यादा हिन्दू मंदिर है इन्डोनेशिया में । मंदिर ही नहीं वहाँ की करन्सी पर गणेश का फोटो है आज भी, हाल ही में इन्डोनेशिया के मुस्लिममानों ने अमेरिका को काली माता की मूर्ति समर्पित करके पूरे विश्व के मुस्लिम लोगों को ये संदेश दिया कि वो पहले हिन्दू ही थे। इस सत्य को वे भी स्वीकारें ।

एक समय था जबकि संपूर्ण धरती पर सिर्फ हिंदू थे। मैक्सिको में एक खुदाई के दौरान गणेश और लक्ष्मी की प्राचीन मूर्तियां पाई गईं। अफ्रीका में 6 हजार वर्ष पुराना एक शिव मंदिर पाया गया और चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, जापान में हजारों वर्ष पूरानी विष्णु, राम और हनुमान की प्रतिमाएं मिलना इस बात के सबूत हैं कि हिंदू धर्म संपूर्ण धरती पर था।

'मैक्सिको' शब्द संस्कृत के 'मक्षिका' शब्द से आता है और मैक्सिको में ऐसे हजारों प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है। जीसस क्राइस्ट्स से बहुत पहले वहां पर हिंदू धर्म प्रचलित था- कोलंबस तो बहुत बाद में आया। सच तो यह है कि अमेरिका, विशेषकर दक्षिण-अमेरिका एक ऐसे महाद्वीप का हिस्सा था जिसमें अफ्रीका भी सम्मिलित था। भारत ठीक मध्य में था।

अफ्रीका नीचे था और अमेरिका ऊपर था। वे एक बहुत ही उथले सागर से विभक्त थे। तुम उसे पैदल चलकर पार कर सकते थे। पुराने भारतीय शास्त्रों में इसके उल्लेख हैं। वे कहते हैं कि लोग एशिया से अमेरिका पैदल ही चले जाते थे। यहां तक कि शादियां भी होती थीं। कृष्ण के प्रमुख शिष्य और महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा अर्जुन ने मैक्सिको की एक लड़की से शादी की थी। निश्चित ही वे मैक्सिको को मक्षिका कहते थे। लेकिन उसका वर्णन बिलकुल मैक्सिको जैसा ही है।

मैक्सिको में हिंदुओं के देवता गणेश की मूर्तियां हैं, दूसरी ओर इंग्लैंड में गणेश की मूर्ति का मिलना असंभव है। कहीं भी मिलना असंभव है, जब तक कि वह देश हिंदू धर्म के संपर्क में न आया हो, जैसे सुमात्रा, बाली और मैक्सिको में संभव है, लेकिन और कहीं नहीं, जब तक वहां हिंदू धर्म न रहा हो।। 

जय सनातन धर्म की

Monday, 8 July 2013

श्री कनकधारास्तोत्रम्



.. श्री कनकधारास्तोत्रम् ..

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् .अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः .. .

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि .
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसंभवायाः .. २
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दं
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् .आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः .. 
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति .
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः .. ४..

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव .मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः .. 
प्राप्तं पदं प्रथमतः खलु यत्प्रभावात्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन .
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः .. ६
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षं
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि .ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः .. 
इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र-
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते .
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः .. ८.
दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारां
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे .
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः .. .
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति .सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै .. १०.
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै .
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै .. ११. ..नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै .
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै .. १२
नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै .
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै .. १३

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै .
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै .. १४

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै .
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै .. १५

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि .त्वद्वन्दनानि दुरितोद्धरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये .. १६

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसंपदः .
संतनोति वचनाङ्गमानसैः
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे .. १७

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे .
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् .. १८..

 दिग् हस्तिभिः कनककुंभमुखावसृष्ट-
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् .प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष-
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् .. १९
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः .
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः .. २०
देवि प्रसीद जगदीश्वरि लोकमातः
कल्याणगात्रि कमलेक्षणजीवनाथे .दारिद्र्यभीतिहृदयं शरणागतं माम्
आलोकय प्रतिदिनं सदयैरपाङ्गैः .. २१
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् .
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः
 इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृत

श्री कनकधारास्तोत्रं संपूर्णम्

इन्द्र कृत श्री लक्ष्मी स्तुति


इन्द्र कृत श्री लक्ष्मी स्तुति

श्री विष्णु पुराण में इन्द्र  कृत श्री लक्ष्मी स्तुति

Sri Lakhmi Stuti - Sri Vishnu Purana
 
इन्द्र उवाच
 
नमस्तस्यै सर्वभूतानां जननीमब्जसम्भवाम्
 
श्रियमुनिन्द्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम् ॥
 
पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्
 
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम् ॥
 
त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोकपावनी
 
सन्धया रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती
 
यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च शोभने
 
आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी ॥
 
आन्वीक्षिकी त्रयीवार्ता दण्डनीतिस्त्वमेव
 
सौम्यासौम्येर्जगद्रूपैस्त्वयैतद्देवि पूरितम् ॥
 
का त्वन्या त्वमृते देवि सर्वयज्ञमयं वपुः
 
अध्यास्ते देवदेवस्य योगिचिन्त्यं गदाभृतः ॥
 
त्वया देवि परित्यक्तं सकलं भुवनत्रयम्
 
विनष्टप्रायमभवत्त्वयेदानीं समेधितम् ॥
 
दाराः पुत्रास्तथाऽऽगारं सुहृद्धान्यधनादिकम्
 
भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम् ॥
 
शरीरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षयः सुखम्
 
देवि त्वदृष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न दुर्लभम् ॥
 
त्वमम्बा सर्वभूतानां देवदेवो हरिः पिता
 
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद्वयाप्तं चराचरम् ॥
 
मनःकोशस्तथा गोष्ठं मा गृहं मा परिच्छदम्
 
मा शरीरं कलत्रं च त्यजेथाः सर्वपावनि ॥
 
मा पुत्रान्मा सुहृद्वर्गान्मा पशून्मा विभूषणम्
 
त्यजेथा मम देवस्य विष्णोर्वक्षःस्थलाश्रये
 
सत्त्वेन सत्यशौचाभ्यां तथा शीलादिभिर्गुणैः
 
त्यज्यन्ते ते नराः सद्यः सन्त्यक्ता ये त्वयाऽमले ॥
 
त्वयाऽवलोकिताः सद्यः शीलाद्यैरखिलैर्गुणैः
 
कुलैश्वर्यैश्च युज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा अपि ॥
 
सश्लाघ्यः सगुणी धन्यः स कुलीनः स बुद्धिमान्
 
स शूरः सचविक्रान्तो यस्त्वया देवि वीक्षितः
 
सद्योवैगुण्यमायान्ति शीलाद्याः सकला गुणाः
 
पराङ्गमुखी जगद्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे ॥
 
न ते वर्णयितुं शक्तागुणञ्जिह्वाऽपि वेधसः
 
प्रसीद देवि पद्माक्षि माऽस्मांस्त्याक्षीः कदाचन ॥




 
श्रीपराशर उवाच
 
एवं श्रीः संस्तुता स्मयक् प्राह हृष्टा शतक्रतुम्
 
श्रृण्वतां सर्वदेवानां सर्वभूतस्थिता द्विज ॥
 
श्रीरुवाच
 
परितुष्टास्मि देवेश स्तोत्रेणानेन ते हरेः
 
वरं वृणीष्व यस्त्विष्टो वरदाऽहं तवागता ॥
 
इन्द्र उवाच
 
वरदा यदिमेदेवि वरार्हो यदिवाऽप्यहम्
 
त्रैलोक्यं न त्वया त्याच्यमेष मेऽस्तु वरः परः ॥
 
स्तोत्रेण यस्तवैतेन त्वां स्तोष्यत्यब्धिसम्भवे
 
स त्वया न परित्याज्यो द्वितीयोऽस्तुवरो मम ॥
 
श्रीरूवाच
 
त्रैलोक्यं त्रिदशश्रेष्ठ न सन्त्यक्ष्यामि वासव
 
दत्तो वरो मयाऽयं ते स्तोत्राराधनतुष्टया ॥
 
यश्च सायं तथा प्रातः स्तोत्रेणानेन मानवः
 
स्तोष्यते चेन्न तस्याहं भविष्यामि पराङ्गमुखी

Sunday, 7 July 2013

शनि ग्रह उपाय


शनि ग्रह पीड़ा निवारण मंत्र
सूर्यपुत्रे दीर्घ देहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:।
मंदचार: प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु में शनि:॥

सूर्योदय के समय, सूर्य दर्शन करते हुए इस मंत्र का पाठ करना शनि शांति में विशेष उपयोगी होता है।
कष्ट निवारण शनि मंत्र
नीलाम्बर: शूलधर: किरीटी गृघ्रस्थितस्त्रसकरो धनुष्मान्।
चर्तुभुज: सूर्यसुत: प्रशान्त: सदाऽस्तुं मह्यं वरंदोऽल्पगामी॥

इस मंत्र से अनावश्यक समस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्रतिदिन एक माला सुबह शाम करने से शत्रु चाह कर भी नुकसान नहीं पहुंचा पायेगा।
सुख-समृध्दि दायक शनि मंत्र
कोणस्थ:पिंगलो वभ्रु: कृष्णौ रौद्रान्त को यम:।
सौरि: शनैश्चरौ मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:॥

इस शनि स्तुति को प्रात:काल पाठ करने से शनिजनित कष्ट नहीं व्यापते  और सारा दिन सुख पूर्वक बीतता है।
शनि पत्नी नाम स्तुति
ॐ शं शनैश्चराय नम:
ध्वजनि धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा॥
ॐ शं शनैश्चराय नम:

यह बहुत ही अद्भुत और रहस्यमय स्तुति है यदि आपको कारोबारी, पारिवारिक या शारीरिक समस्या हो। इस मंत्र का विधिविधान से जाप और अनुष्ठान किया जाये तो कष्ट आपसे कोसों दूर रहेंगे। यदि आप अनुष्ठान न कर सकें तो प्रतिदिन इस मंत्र की एक माला अवश्य करें घर में सुख-शांति का वातावरण रहेगा।
               धन्यवाद